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Sunday, January 20, 2013

असेट राहुल सेट राहुल


कांग्रेस के असेट राहुल , दिग्विजयसिंह ने यही कहा था ,चिंतन से सेट हो गए हैं . पद कोई बड़ा उन्हें मिला हो ऐसा नहीं है लेकिन कांग्रेस में उन्हें  मान्य से सर्वमान्य मान्यवर बना दिया गया है  , इस पर अचरज तो कोई है नहीं , बिन पद भी वे सर्वमान्य  तो थे ही और महासचिव के पद पर वैसे भी ओहदेदार थे . इसलिए  उपाध्यक्ष होना उनकी प्रोन्नति है क्योंकि यह ढोल-धमाके और फटाके की गूंज के साथ है जश्न के साथ है . छोटा बड़ा हर कांग्रेसी चिंतन से खुश होकर बाहर निकला है . अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष की इतनी गरिमा कांग्रेस ने ही बढाई  है .

राहुल गाँधी के लिए बड़ा पद पहले ही खोजा  जा रहा था .कांग्रेस के भीतर छह महीने से इस पर चिंतन चल रहा था कैसे और किस तरह उन्हें ज्यादा तर्ज़ दी जाए . खबरे आती रही वे कार्यकारी अध्यक्ष हो सकते हैं लेकिन इसके कई मायने निकल रहे थे . उनमें यह भी क्या तब सोनिया गाँधी रिटायर हो जायेगी , क्या तब उनका राजनैतिक अस्तित्व बना रहेगा , क्या उनकी अस्वस्थता जैसे और कयास लगाए जायेंगें , मीडिया क्या-क्या उधेड़बुन करेगा जिसके क्या परिणाम  हो सकते हैं . इन सब पर कांग्रेस के भीतर चिंतन मनन हुआ है और उसकी तोड़ यही हुई कि  उपाध्यक्ष का पद भी वजनदार बना दिया जाए राहुल गाँधी के इस पद पर आसिन  होते ही उपाध्यक्ष  का पद वजनदार और असरदार हो गया है . 

दिग्विजयसिंह पहले दिन ही बोले थे राहुल कांग्रेस के एसेट्स हैं उनका अर्थ राहुल के कद को ऊँचा देखना था लेकिन तब तक राहुल अ सेट थे .यूपी तक सीमित . उनका राष्ट्रीय महत्व था लेकिन मान्य राजनैतिक स्थापना तब भी नहीं थी , वे खुद भी बुझेबुझे से थे , देखा गया इन दिनों वे बड़े राजनैतिक मुद्दों पर भी चुप रह रहे थे . उनकी चुप्पी के भी दो अर्थ थे पहला- उनकी राजनैतिक महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गयी थी कि  वे खुद पद प्रतिष्ठित होकर ही अपनी राय  देना चाहते हों दूसरा- उनका पद प्रतिष्ठित  होना तय था इसलिए तब तक उनसे चुप रहने का ही कहा गया हो ताकि कोई नया विवाद खड़ा नहीं हो इसलिए उनके सेट होने का इंतज़ार किया गया . 

राहुल अब सर्वमान्य सेट हैं . कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी .अब उनकी बातों को कांग्रेस की नीतिगत बात और विचार माना  जाएगा क्योंकि  वे रीति से बने कांग्रेस के नीतिगत व्यक्ति हैं . पूरी तरह से सेट , अध्यक्ष  की गरिमा को बनाये रखकर कार्यकारीअध्यक्ष के रुतबे तक असरदार नेता की तरह प्रतिष्ठित .अ सेट से सेट राहुल याने अब एसेट्स राहुल भी . अब उन्हें राजनीति  में अपने को सेटेड राहुल के रूप में स्थापित करने की चुनौती का भी सामना करना है .पद से बड़ा महत्व  उन्हें दिया  है कांग्रेस के भीतर वे  कितन असर छोड़ेंगें यह वक़्त बतायेगा .उनके लिए समय कठिन नहीं है क्योंकि भीतर की चुनौतियां उनके लिये  है ही नहीं , बड़े पदों पर यह सुविधा हर किसी राजनीतिज्ञ को प्राप्त नहीं है, चुनौती उन्हें गाँधी परिवार  से  निकलकर अपनी बनाने की है  अपनी दिखाने की है 
सुरेन्द्र बंसल 

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