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Saturday, June 22, 2013

मोक्ष के द्वार पर


by Surendra Bansal (Notes) on Friday, June 21, 2013 at 10:17pm

मैं  भावनाओ में बह जाना चाहता था ,
पता नहीं भावनाओं का बहाव 
कब रूद्र से रौद्र हो गया 
और मैं बहता गया बहता गया 
ठोकरें खाते खाते 
किसी पत्थर के बीच 
थम गयी मेरी फंसी हुई 
बहती हुई भावनाएं 
फूल गयी सांस ही नहीं 
यह शरीर भी .
साथ चले बहुत से रिश्ते 
कुछ दूर रह गए , कुछ दूर हो गए 
फिर भी कोई रंज शिकवा नहीं 
शायद मेरा मोक्ष 
द्वार पर इंतज़ार कर रहा है ...
सुरेन्द्र बंसल 
22 ;06 जून 21 , 2013  
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